Poetry in Hindi - कविताओं का संकलन। धूप का एक टुकड़ा - हिंदी कविता / Dhoop ka ek tukada - Poem in Hindi प्रकृति की गोद में होने वाले अस...
Poetry in Hindi - कविताओं का संकलन।
धूप का एक टुकड़ा - हिंदी कविता / Dhoop ka ek tukada - Poem in Hindi
प्रकृति की गोद में होने वाले असंख्य क्रीड़ा कलापों में से एक , धूप और जल तरंगों के बीच किस प्रकार स्वत: ही एक मिठास भरा आत्मीयता व कोमल संबंध स्थापित हो जाता है, उससे जुड़ी मृदुल भावनाओं से युक्त यह कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है :-
धूप का एक टुकड़ा
लहरों के संग खेलता ,
एक चमकीला धूप का टुकड़ा।
खुश होकर एक चंचल मन,
जैसे आईने में देखता हो मुखड़ा।
कभी लहरों के आगे भागता,
कभी लहरों के पीछे दौड़ता।
कभी करता जल को आलिंगन,
जैसे अपनी हो पूरी धरा और गगन।
प्रात: काल जलधारा भी कुछ यूं मचल जाती,
धूप के नर्म, गोरे चितवन को देख कर।
कभी सांस रोके एकटक देखती,
कभी हिलोरे भरती,कभी गुदगुदाती हंस कर।
श्वेत कमल सी उजली धूप की काया,
प्रेम और मान पाकर खूब सारा।
तप कर अंग अंग फूले न समाता,
प्रेयसी जो है उसकी जलधारा।
किंतु, सांझ होते ही धूप के टुकड़े को,
घर वापसी की मजबूरी बड़ा अखरता।
बुझे मन से करके वायदा फिर आने को,
चल देता हौले से पीली - नारंगी छटा बिखेरता।
चूं चूं चहचहाती खगों के मधुर स्वरों में
कहीं खो जाती तब कसक जलधारा की।
प्रतीक्षा करती फिर शांत भाव से वियोग में,
ओढ़कर आशा भरी मुस्कान, एक नई सुबह की।।
:- तारा कुमारी
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