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मुझे कोई मनाए Mujhe koi manaye - A Hindi poem

  POETRY IN HINDI  :- कविताओं का संकलन। मुझे कोई मनाए( हिंदी - कविता) / Mujhe koi manaye (Hindi - poem) ( बच्चों में बालसुलभ प्रवृति होती है...

 

POETRY IN HINDI  :- कविताओं का संकलन।

मुझे कोई मनाए( हिंदी - कविता) / Mujhe koi manaye (Hindi - poem)

( बच्चों में बालसुलभ प्रवृति होती है - रूठना, फिर मान जाना। लेकिन जीवन के हर उम्र और पड़ाव में  हम रूठें और कोई हमें हर बार मना ले, ऐसा कम ही होता है। हम जीवन के कई सवालों  और  जवाबों के बीच उलझते हैं और सुलझते हैं।
इन्हीं भावों से ओतप्रोत ये कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है।)

mujhe koi manaye



मुझे कोई मनाए 


माथे पर छोटी - सी परवाह की एक लकीर लिए

कांधे पर धीमें से अपनेपन का स्पर्श कर,

गालों से फिसलते आंसू पोंछ - गले लगाए 

ख्वाहिश थी रूठने पर मुझे कोई मनाए।


नाराजगी में मैं अगर ताव भी दिखाऊं

झूठ मूठ के गुस्से में झटक कर दूर हो जाऊं

तब भी मुस्कुरा कर वो मेरे और पास आए

खवाहिश थी रूठने पर मुझे कोई मनाए।


ना हो जरूरत मुझे किन्हीं शब्दों की

और बयां हो जाए कहानी... 

नम आंखों से मेरे अरमानों की।

कुछ इस तरह दुलार की बौछार हो जाए

ख्वाहिश थी रूठने पर मुझे कोई मनाए।


पर ये क्या बात हुई!

चाशनी में डूबे शहर में मेरी रुसवाई हुई।

संगदिल जमाने में,मेरे चंद तजुर्बों में

बस एक ये ही नहीं था मेरी झोली में -


रूठना छोड़ दो.. 

ना करो तुम इंतज़ार किसी का।

नहीं होते हैं पूरे, कुछ मासूम ख्वाहिशें,

कदम कदम पर होती हैं सिर्फ आजमाईशें।


वक़्त ने बड़े बेरहमी से,ये सबक भी सिखा दिया - 

जिंदगी की छोटी सी कश्ती में,

पतवार भी हम हैं।

खेवैया भी हम हैं।


दरिया की गरजती उफनती लहरों में,

गोताखोर भी हम हैं।

हर तूफान से दो- दो हाथ कर के

साहिल पर पैर जमाने वाले भी हम हैं।


:- तारा कुमारी

( कैसी लगी आपको यह गीत/कविता?जरूर बताएं। यदि पसंद आए या कोई सुझाव हो तो कमेंट में लिखे। आपके सुझाव का हार्दिक स्वागत है।)

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