Garmi chhaya hawa par kah mukri kavya vidha se kavita
POETRY IN HINDI :- कविताओं का संकलन।
गर्मी,छाया,हवा पर कविता।
(काव्य विधा - कह मुकरी)
गर्मी,छाया,हवा पर कविता - hindi poem
भोर होते ही तपने लगता
जैसे रात की आग हो सुलगता
देखो तो इसकी बेशर्मी!
कौन सखि साजन? ना सखि गर्मी।
बाहर निकलो घर से, तो लहर जाता
बन्द कमरे में जैसे सब ठहर जाता
चलो मिली तो थोड़ी नरमी
कौन सखि साजन? ना सखि गर्मी।
जब भी वो पास आए
पसीने से तन भीग जाए
तरसा दे ठंडी हवा के लिए जुल्मी
कौन सखि साजन? ना सखि गर्मी।
लस्सी,मिल्क शेक,आम का पन्ना
खूब पिलाता सुबह शाम बन्ना
पर फिर भी लगता वो बैरी
कौन सखि साजन? ना सखि गर्मी।
जब हो खूब घने पेड़ के नीचे
सूरज ना दिखता उसके पीछे
संग अपने ठंडी हवा लाता वो साया
कौन सखि साजन? ना सखि छाया।
चांदनी रात में बिछा हो खटिया
और समय के रथ से गुम हो जाए पहिया
तब हौले से दबे पांव मुझे छूकर भागे मुवा
कौन सखि साजन?ना सखि ठंडी हवा।
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