बे सिर पैर की ख्वाहिशें - हिंदी कविता/ Be sir pair ki khawahishen - Hindi poem. बे सिर पैर की ख्वाहिशें बस इतनी सी थी आरजू , कि मुझे जब दर्द...
बे सिर पैर की ख्वाहिशें - हिंदी कविता/
Be sir pair ki khawahishen - Hindi poem.
बे सिर पैर की ख्वाहिशें
बस इतनी सी थी आरजू ,
कि मुझे जब दर्द हो...
उनके दिल में दस्तक हो।
अगर रूठ जाऊं मैं,
जमीं आसमां एक कर दे वो..
रिश्ते में कुछ ऐसी बात हो।
मेरे उल्टे सीधे अल्फाजों में भी,
बेइंतेहा प्यार ढूंढ़ ले जो..
ऐसी नज़रें मुझपे इनायत हो।
नाज़ नखरे और झगड़ों के बीच
बारी जब साथ देने की आए..
तो दोनों ओर से उल्फत हो।
आए थे जमाने में जुदा-जुदा
लेकिन जब जाने की बात हो..
रुखसत के लम्हों में वो मेरे पास हो।
(स्वरचित)
:- तारा कुमारी
(कैसी लगी आपको यह कविता?जरूर बताएं। यदि पसंद आए या कोई सुझाव हो तो कमेंट में लिखे। आपके सुझाव का हार्दिक स्वागत है।)
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