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कश्मकश kashmakash - Hindi poem

कश्मकश / Kashmakash - हिंदी कविता(Hindi poem) (जिनके बारे हमें लगता है कि वो हमारा दर्द नहीं समझ सकते, हम उन्हें नजरअंदाज करते हैं। लेकिन हो...

कश्मकश / Kashmakash - हिंदी कविता(Hindi poem)

(जिनके बारे हमें लगता है कि वो हमारा दर्द नहीं समझ सकते, हम उन्हें नजरअंदाज करते हैं। लेकिन हो सकता है वो उसी दर्द से गुजर रहे हों और उन्होंने कभी जताया ना हो।ऐसे में जब हम उन्हें ' तुम नहीं समझोगे ' जैसी बातें  कहकर और दर्द दे जाते हैं तो वो चुपचाप सहना ही बेहतर मान लेते हैं। और हमें इस बात का एहसास तक नहीं हो पाता।)

क्या आपने ऐसे परिस्थितियों का कभी सामना किया है?कुछ ऐसे ही आंतरिक संघर्षों और भावनाओं से ओतप्रोत ये छोटी सी कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है:-

Kashmakash


कश्मकश

एक कश्मकश इधर है 
एक कश्मकश उधर है।
उसने तो अपने टूटते घरौंदे  दिखा दिए
हम ना दिखा सके अपना टूटता हुआ वजूद।
जमाने के मखौल से छिपा रखा है अब तक
वरना घरौंदा तो टूटा हुआ हमारा भी है।
और वो सोचते हैं कि हमें अंदाजा ही नहीं 
घरौंदे के टूटने की कसक।
बरसों जिन हालातों को जीती आयी हूं
उन्हीं में से चंद रोज गुजर कर वो
हमें ही नासमझ और खुशनसीब कहते हैं।
जिस दर्द में डूबी कश्ती का आईना हैं हम
उसी पर सवार होकर
नये सफर के अनुभव हमसे बांटते हैं वो।
कहते है तुम्हें पता ही नहीं,
इसलिए तुम समझती नहीं।
कहते हैं हमसे, उलझनों में पलते हैं वो
उन्हें खबर ही नहीं...
उन्हीं उलझनों की आग में रोज जलते हैं हम।
उन्हें टूटता देख दोगुना हो जाता है दर्द मेरा
एक वो दर्द जो मेरा है , पर वो पहचानते नहीं
एक दर्द उनका जो मेरा हो चुका है ,पर वो मानते नहीं।
उन्हें लगता है कुछ महसूस नहीं करते हैं हम,
दिन रात जिस डर के साये में वो जीते  हैं
हर रोज उसी के पहलू में सर रख के रोते हैं हम ।
हां, बेशक जुबां सिल कर रखे हैं हमने
और वो सोचते हैं कि -
बड़े चैन से सोते हैं हम ।।

(स्वरचित)
:- तारा कुमारी

कश्मकश - खींचातानी, आंतरिक संघर्ष।

(कैसी लगी आपको यह कविता?जरूर बताएं। यदि पसंद आए या कोई सुझाव हो तो कमेंट में लिखे। आपके सुझाव का हार्दिक स्वागत है।)

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COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. हर दिवस मिले क्षणभंगुर को, और मिलकर फिर से दूर हुए थे,
    मित्रता के स्वप्न मेरे भी बार-बार यूँ चूर हुए थे...

    मित्र कहाँ लेकिन माना था, फिर से वापस वो आया था,
    याद तुम्हें करता है अब भी क्या उसने नहीं बताया था?

    एक राग पुराना लेकर तुमने मेरा वजूद झकझोर दिया था, और हठ को प्रेम समझकर तुमने मित्रता को छोड़ दिया था।

    बेशक दर्द मेरा झुठलाकर अपने दर्द को तुम दिखलाओ,
    पर मुझको भी यह समझाना इतने क्या मजबूर हुए थे?

    👍 अंक

    ReplyDelete
  2. Thanks Ankit.
    After a long time I read your answer today.Well written.

    ReplyDelete
    Replies
    1. Always stay blessed, Tara. I always pray for your wellness. - Ank.

      Delete

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Poetry in Hindi: कश्मकश kashmakash - Hindi poem
कश्मकश kashmakash - Hindi poem
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