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... सीख रही हूं मैं। Sikh rahi hun main - Hindi poem

.... सीख रही हूं मैं। Sikh rahi hun main - A Hindi poem बदलाव या परिवर्तन जब भी हमारे जीवन में आते हैं,हम दो अनुभूतियों में से गुजरते हैं।  ...


.... सीख रही हूं मैं। Sikh rahi hun main - A Hindi poem

बदलाव या परिवर्तन जब भी हमारे जीवन में आते हैं,हम दो अनुभूतियों में से गुजरते हैं।  या तो खुशी या दुख की अनुभूति।किसी को खोने का दुख हो। या  कभी जो जिंदगी हम बड़े मज़े में जी रहे होते हैं और उसमें हम आनंद अनुभव करते हैं। यदि वह अचानक गुम हो जाए तो हम सहज ही उसे स्वीकार नहीं कर पाते ।ये परिस्थिति हमें दुख का अहसास दिलाती है।हम  सभी कभी ना कभी ऐसे हालातों का सामना अपने जीवन में जरुर करते हैं।

कुछ ऐसे ही उद्वेलित करती भावनाओं से गुजरती मन की दशा को उकेरती ये कविता प्रस्तुत है..

Sikh rahi hun main

   ... सीख रही हूं मैं।


बात बात पर रूठ जाना और मनाना
फिर बड़े शिद्दत से एक दूजे को गले लगाना
हो गई  हैं ये गुजरी बातें
नश्तर बन कर चुभती हैं अब ये यादें
उन जख्मों पर खुद ही मरहम लगाना सीख रही हूं मैं,
चोट खाकर मुस्कुराना सीख रही हूं मैं।

खनखनाती हंसी और बस बेफिक्र सी बातें
उनके बिना ना होती थी दिन और रातें
गुम हुए अब वो बचकानी हरकतें
वो दीवानगी वो शरारतें
हसरतों का दम घोंटना सीख रही हूं मैं,
चोट खाकर मुस्कुराना सीख रही हूं मैं।

वक़्त ने लिया कुछ यूं करवट 
गम ने घर बनाया बिना आहट 
बदल गया एकदम से सारा मंजर 
शब्द एक दूजे के लगने लगे खंजर
अब बेचैनी में चैन ढूंढ़ना सीख रही हूं मैं,
चोट खाकर मुस्कुराना सीख रही हूं।

माना थे हम अजनबी कभी
मान लिया तुम्हें अपना तभी
खुशियां और गम सारे तेरे
सब हो गए जब से मेरे
तेरी मर्जी को अपनी मर्जी बनाना सीख रही हूं मैं,
चोट खाकर मुस्कुराना सीख रही हूं मैं।

यूं तो दूर रहना तुझसे 
सांसों को रोके रखना हो जैसे
बेपनाह इश्क़ तुझसे अब भी है मगर
जो लगती है तुझे ये बोझ अगर
तुझसे दूर रहना सीख रही हूं मैं, 
चोट खाकर मुस्कुराना सीख रही हूं मैं।

जरा जरा सी बात पर आंखें नम करना
और ख्वाहिशों की पोटली बगल में रखना
नहीं मिलता अब वो स्नेहिल स्पर्श और मीठी बातें
कसक दिल में उठती है जब,अश्रु बूंद हैं लुढ़क जाते
उन अश्कों को सलीके से छुपाना सीख रही हूं मैं,
चोट खाकर मुस्कुराना सीख रही हूं मैं।

कुछ टूट रहा है अंतर्मन में
क्या तुझ तक पहुंचते वो एहसास नहीं? 
मृग तृष्णा - सा  प्रेम तुम्हारा
नाज़ुक  सा ये  हृदय  मेरा
इस कोमल ह्रदय को पाषाण बनाना सीख रही हूं मैं,
चोट खाकर मुस्कुराना सीख रही हूं मैं।

(स्वरचित)
:- तारा कुमारी

( कैसी लगी आपको यह गीत/कविता?जरूर बताएं। यदि पसंद आए या कोई सुझाव हो तो कमेंट में लिखे। आपके सुझाव का हार्दिक स्वागत है।)

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Poetry in Hindi: ... सीख रही हूं मैं। Sikh rahi hun main - Hindi poem
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