ख़ामोशी khamoshi/Silence - Hindi poem ख़ामोशी khamoshi - Hindi poem जब उम्मीदें टूट कर बिखरती हैं लफ्ज़ जुबां से गुम हो जात...
ख़ामोशी khamoshi/Silence - Hindi poem
ख़ामोशी khamoshi - Hindi poem
जब उम्मीदें टूट कर बिखरती हैं
लफ्ज़ जुबां से गुम हो जाते हैं
ठहर सा जाता है वक्त
सन्नाटा छा जाता है
जब जुबां खामोश हो जाती हैं
खामोशी ही शोर मचाती है
सुन पाता वही इस शोर को
जिसने खामोशी ओढ़ी है
बेसबब नहीं होती ख़ामोशी
जब दर्द हद से गुज़र जाता है
हर राह बंद हो जाता है।
बना मैं सबका साथी,
ना कोई बना मेरा हमदर्द ,
बना मैं सबका साथी,
ना कोई बना मेरा हमदर्द ,
रोकने के लाख मशक्कत के बाद भी
जब आँखों से आँसू लुढ़क ही जाते हैं ।
उँगलियाँ चुपके से उनको पोंछती
तब ख़ामोशी ही बेहतर लगती
है।
जब कोई ना पहुँचे, दुखती रग तक
तब ख़ुद को खुद ही समझाना होता है ।
ना उम्मीद रखो किसी से
दिल को ये बतलाना पड़ता है ।
ख़ामोशी ही तब हर मर्ज की दवा बन जाती है,
सुकून व मरहम, ज़ख्म की बन जाती है।
ये सफर है, तन्हा और तन्हाई का
साथी हैं खुद का खुद ही ,
साथी हैं खुद का खुद ही ,
बाकी तो सब सफर के मुसाफ़िर होते हैं,
पल दो पल के साथी होते हैं..
बाकी तो सब सफर के मुसाफ़िर होते हैं।
पल दो पल के साथी होते हैं..
बाकी तो सब सफर के मुसाफ़िर होते हैं।
(स्वरचित)
:- तारा कुमारी
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Nice poetry
ReplyDeletewowwww
ReplyDeleteThank you.
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