मातृ-दिवस माँ जननी है, जन्मदात्री है प्रेम की अविरल बहती समंदर है दुखों को झेलती अडिग पर्वत है स्नेह की वर्षा करती फुहार ...
मातृ-दिवस
माँ जननी है, जन्मदात्री है
प्रेम की अविरल बहती समंदर है
दुखों को झेलती अडिग पर्वत है
स्नेह की वर्षा करती फुहार है
ना होती इस रिश्ते में मिलावट
ना होती कभी चेहरे में थकावट
होंठों में रहती हरदम दुआएँ
पूत हो जाए कपूत, ना होती कुमाता
माँ की आँखें थक कर बंद होती भले
पर सोते में भी होती फिक्रमंद
है माँ ही प्रथम शिक्षिका
है माँ ही प्रथम सखा
माँ तो है प्रेम की अनंत सरिता
कैसे व्यक्त करूँ मैं शब्दों में
नहीं समा सकती तुम
शब्दों के अर्थों में..
नहीं है मोहताज माँ का प्रेम
एक दिवस की,
हर दिन ही है मातृ-दिवस
ना देना कभी दुःख माँ को
आदर करो माँ का उम्रभर..
यहीं है स्वर्ग यही है धर्म
है मातृ-दिवस की भेंट यही |
(स्वरचित)
:- तारा कुमारी
यकीन
कहते थे साथ ना छोड़ेंगे हम
किताब की व्यथा
सूक्ष्म - शत्रु
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