इंतज़ार कुछ हलचल सी है सीने में सुकून कुछ खोया - सा है जाने कैसी है ये अनुभूति दिल कुछ रोया - सा है कुछ आहट सी आयी है...
इंतज़ार
कुछ हलचल सी है सीने में
सुकून कुछ खोया - सा है
जाने कैसी है ये अनुभूति
दिल कुछ रोया - सा है
कुछ आहट सी आयी है
और दिल कुछ धड़का - सा है।
हाथ - पाँव में हो रही कंपन-सी
बेचैनी ये जानी पहचानी - सी है
सांसे भी है कुछ थमी - सी
कितने वक्त गुज़र गये इन्तजार में
मेरी आहें भी हैं कुछ जमी - सी।
पलकें अब मूँदने लगी हैं
साँसें अब क्षीण पड़ रही हैं
अब तो आ जाओ इन लम्हों में
जाने कब लौटोगे?
आने का वादा था और ना भी था तो,
तुम्हारा इन्तज़ार तो था..
सारी हदें तोड़ कर आ जाओ
दुनिया की रस्मों को छोड़ कर आ जाओ
चंद लम्हों के लिए ही,
अब तो आ जाओ
मेरे लिए.. सिर्फ मेरे लिए |
(स्वरचित)
:तारा कुमारी
More poems you may like :-
1. कहते थे साथ ना छोड़ेंगे हम
2. दुःस्वप्न - कोरोना से आगे
3. निःशब्द
5. कुछ पंक्तियां "नवोदय" के नाम
Nice creation.
ReplyDeleteThanks
Delete