नहीं हारी हूं मैं | चली थी, एक अनजान राह पर बेशक, मंजिल का पता न था पर कुछ ख्वाब सजे थे, दिल मे नन्ही - सी जान और कोई स...
चली थी, एक अनजान राह पर
बेशक, मंजिल का पता न था
पर कुछ ख्वाब सजे थे, दिल मे
नन्ही - सी जान और कोई साथ न था |
बेख़बर थी, दुनिया पत्थर की है
यूँ ही यहाँ कोई अपनी -
एक मुस्कराहट भी नहीं लुटाता
टकरा गयी उन पलों से मैं,
खबर ही ना हुई -
सारे ख्वाब, कब खो गए उनमें,
बदल गयी दुनिया मेरी
रह गया तो बस इक चेहरा,
टूटे ख्वाब, टूटे वजूद और
आंसुओं का सैलाब |
सहसा, धीमी - धीमी दबी - घुटी-सी
एक चीख कानों पर पड़ने लगी -
खो रही हूँ मैं.. खो रही हूँ मैं |
क्या खुद को पा सकूंगी वापस?
इस सवाल से जुझते-जुझते
कहीं अंतर्मन से आवाज आयी -
आशाओं के समंदर से -
इक बूंद जुटाकर, अब तक जी रही हूँ मैं |
वक्त भले कम पड़ जाए,
सफर चाहे अधूरा रह जाए,
उठूंगी फिर, चलूंगी फिर-
नहीं हारी हूं मैं, नहीं हारी हूं मैं||
(स्वरचित)
: तारा कुमारी
(स्वरचित)
: तारा कुमारी
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Nahi haari hun main.
Chali thi ek anjaan raah par
Beshaq, manzil ka pata na tha
Par kuchh khwaab saje the,dil me
Nanhi-si jaan aur koi sath na tha.
Bekhabar thi, duniya pathar ki hai.
Yun hi yhan koi apni -
Ek muskurahat bhi nahi lutata
Takra gyi un palon se main,
khabar hi na huyi-
Saare khwab, kab kho gye unme,
Badal gyi duniya meri
Rah gya to bas ek chehra,
Tute khwab, tute wajud aur
Aansuwon ka sailab.
Sahsa, dheemi -dheemi dabi-ghuti-si
Ek chikh kaano par padhne lagi-
Kho rahi hun main ... Kho rahi hun main.
Kya khud ko pa sakungi wapas?
Is sawal se jujhte-jujhte
Kahin anarman se aawaj aayi
Aashawon ke samandar se-
Ek boond jutakar, ab tak ji rahi hun main.
Waqt bhale kam pad jaye
Safar chahe adhura rah jaye,
Uthungi phir, chalungi phir-
Nahi haari hun main,nahi haari hun main.
- Written by Tara kumari
Hope is everything. nice poem.
ReplyDeleteThank you
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